करीब 1 वर्ष होने को है और कोरोना महामारी रुकने के बजाय ज्यादा रफ़्तार से फैलती जा रही है और दुःखद है कि अबतक लाखो जीवनदीप बुझा चूकी है। कोरोनो का ड़र तो सभी को है मगर अब कोई ड़रता नहीं, बेफ़िक्र या लापरवाह होकर जीने में शायद अपनी शान या बहादुरी समझने लगे हैं।
जिंदगी जिंदादिली से जियो, बेफ़िक्री से नहीं। जिंदादिल कभी बेफ़िक्र या लापरवाह होकर नहीं जिया करते।
कितना सरल और निःशुल्क है कोरोना से बचनाः सिर्फ नाक और मुंह को साफ़ कपड़े (मास्क) से ढ़कें, हाथों को साबुन से धोते रहें और परस्पर एक गज़ की दूरी बनायें रखें।
कोईआश्चर्य की बात नही है, कोरोना फैल नहीं रहा है, हम उसे फैला रहे है !!!
और ऐसे ही हम बेफ़िक्र और लापरवाह रहेंगे तब धरों में रहकर भी कोरोना से कोई नहीं बच सकेगा क्योंकि आखिर हमारी घरों से बाहर भी दुनिया है !!!
जान है तो जहाँ है यह मुहावरे का मतलब तब है जब हम जहाँ को भी बचाने के लिए छोटा-सा योगदान दें और खूद से ५ या १० साल के लिए प्रतिज्ञा करें कि,
"मैं नाक और मुंह को साफ़ कपड़े (मास्क) से हमेशा ढ़कुँगा,
हाथों को साबुन से धोते रहुँगा, और
परस्पर एक गज़ की दूरी बनायें रखुँगा"
अब हमें कोरोना को मारना नहीं है क्योंकि वह कभी भी मरेगा नहीं लेकिन हमें ना हारना है, ना मरना है। कोरोना बीमारी का ईलाज तो अवश्य होगा जब Vaccine उपलब्ध हो जाएगी जैसे और बिमारियों का ईलाज हमारे डाॅक्टर कर ही रहें है।
बस,
तबतक सब्र करें और सावधान रहें, बेफ़िक्री या लापरवाही तो कभी भी नहीं।
जिंदादिली से जियो जिंदगी।
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