top of page
Suresh Gorana

गणेश चतुर्थी एवं पर्युषण पर्व


गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को विनायक चतुर्थी भी कहते है। भाद्रपद शूक्लपक्ष चतुर्थी से 10 दिन तक अर्थात् अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। लोग बड़े ही विश्वास और श्रध्धा के साथ गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करते हैं और रोज उनकी पूजा, आरती व विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। तीन, पांच या दस दिन बाद मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

गणपति: गण + पति। ‘पति’ यानी पालन करने वाला, स्वामी। ‘गण’ शब्द के विभिन्न अर्थ हैंः गण यानी अष्टवस्तुओं का समूह। वसु यानी दिशा, दिक्‌पाल (दिशाओं का संरक्षक)। अतः गणपति का अर्थ हुआ दिशाओं के स्वामी।

बिना गणपति की अनुमति से किसी भी देवता का कोई भी दिशा से आगमन नहीं हो सकता, इसलिए कोई भी मंगल कार्य या देवता की पूजा करने से पहले गणपति पूजन अनिवार्य है।

गणपति का पूजन किए बिना कोई कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए। गणपति सभी बाधाओं और विपदाओं को दूर करने वाले तथा मनोकामना को पूरा करने वाले देवता हैं।

गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थजम्बू फलचारुभक्षणम् । उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्र्वरपादपंकजम् ।।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

गणेश वंदना के साथ कोई भी काम शुरू करना हिन्दू धर्म की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। विघ्नहरता, विघ्नविनाशक, मंगल मूर्ति जैसे नामों से प्रसिध्ध गणेशजी की पूजा सिर्फ घर-परिवारों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक राष्ट्रीय पर्व की तरह की जाती है और सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने वाला गणेश चतुर्थी का उत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।


पर्यूषण पर्व, जैन समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है। जैन धर्म धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्यूषण 8 दिन चलते हैं। ८ वें दिन महत्वपूर्ण त्यौहार संवतसरी महापर्व मनाया जाता है। इस दिन यथा शक्ति उपवास रखा जाता है। पर्यूषण पर्व कि समाप्ति पर क्षमायाचना पर्व मनाया जाता है।

उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण पर्व मनाते हैं जिसे 'दसलक्षण धर्म' भी कहते हैं।

जैन धर्म के दस लक्षण इस प्रकार है:

१) उत्तम क्षमा, २) उत्तम मार्दव, ३) उत्तम आर्जव, ४) उत्तम शौच, ५) उत्तम सत्य, ६) उत्तम संयम, ७) उत्तम तप,८) उत्तम त्याग, ९) उत्तम अकिंचन्य, १०) उत्तम ब्रहमचर्य।

कहते हैं जो इन दस लक्षणों का अच्छी तरह से पालन कर ले उसे इस संसार से मुक्ति मिल सकती है। पर सांसारिक जीवन का निर्वाह करने में हर समय इन नियमों का पालन करना मुश्किल हो जाता है और बहुत शुभ और अशुभ कर्मों का बन्धन हो जाता है। इन कर्मो का प्रक्षालन करने के लिए श्रावक उत्तम क्षमा आदि धर्मों का पालन करते है।

इन दस लक्षणों का पालन करने हेतु जैन धर्म में साल में तीन बार दसलक्षण पर्व मनाया जाता है।

  1. चैत्र शुक्ल ५ से १४ तक

  2. भाद्र शुक्ल ५ से १४ तक और

  3. माघ शुक्ल ५ से १४ तक।

भाद्रपद महीने में आने वाले दशलक्षण पर्व को लोगो द्वारा ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। इन दस दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत-उपवास आदि करते है। ज्यादा से ज्यादा समय भगवान की पूजा-अर्चना में व्यतीत किया जाता है।

क्षमायाचना जब आत्ममंथन और आत्मचिंतन के पश्चात् की जाति है तब क्षमा दान के तहत नहीं बल्कि सहृदयता से मिलती है।

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Commentaires


Post: Blog2_Post
bottom of page