पर्युषण त्योहार की मुख्य बातें जैन धर्म के पांच सिद्धांतों पर आधारित हैं। जैसे कि अहिंसा यानी कि किसी को कष्ट ना पहुंचाना, सत्य, अस्तेय यानी कि चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यानी कि जरूरत से ज्यादा धन एकत्रित ना करना।
जैन समुदाय में दो क्षेत्र हैं, दिगंबर और श्वेतांबर।
दिगंबर इस त्योहार को दसलक्षण कहते हैं और पर्युषण की अवधि 10 दिनों की होती है।
श्वेतांबर 8 दिन तक इस त्योहार को मनाते हैं, जिसे अष्टानिका कहा जाता है।
संवत्सरी अर्थात ‘विश्व-मैत्री दिवस’ या क्षमवानी अंत उत्सव हैं।
अंतिम दिन दिगंबर 'उत्तम क्षमा' तो श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।
दशलक्षण महापर्व के दस दिन हैं
उत्तम क्षमा धर्म: सबको क्षमा सबसे क्षमा।
उत्तम मार्दव धर्म: सभी जीवों को जीवन जीने का अधिकार है। अहंकार और परिग्रह छोडा जाये और सब से विनम्र भाव रखकर सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव रखें।
उत्तम आर्जव धर्म: सरल स्वभाव और निष्कपट द्वारा ही सही ज्ञान, खुशी, और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
उत्तम सत्य धर्म: मन, वचन और कर्म से सत्य को अपनाएँ तथा सत्य का पालन करें।
उत्तम सोच धर्म: मन को निर्लोभी एवं संतोषी बनाकर सकारात्मक सोच (विचारधारा) रखने से ही परमशांति मिलती है।
उत्तम संयम धर्म: इंद्रियों और मन पर नियंत्रण रखना ही संयम है। संयम रखने से जीवन सार्थक तथा सफल बनता है।
उत्तम तप धर्म: अपनी इच्छाओं को वश में रखना ही तप है और तप द्वारा तन, मन और संपूर्ण जीवन शुद्ध एवं सफल बनते है।
उत्तम त्याग धर्म: त्याग मतलब छोडना है और जैन धर्म में इसका सबसे अधिक महत्व है। उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाकर ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग किया जा सकता है। त्याग में ही संतोष और शांति का भाव है।
उत्तम आकिंचन्य धर्म: उत्तम आँकिंचन धर्म हमें मोह को त्याग करना सिखाता है। जिसने भीतरी (मोह- जैसे गलत मान्यता, गुस्सा, घमंड, कपट, लालच, मजाक, पसंद नापसंद, डर, शोक, और वासना) बाहर सभी प्रकार के परिग्रहों का त्याग कर दिया है, वो ही परम समाधि अर्थात् मोक्ष (पुर्नजन्म) से नया जीवन का सुख पाने का हकदार है।
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म: ‘ब्रह्म’ जिसका मतलब आत्मा, और ‘चर्या’ का मतलब रखना। ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा में रहना है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओं के गुलाम ही हैं।
पर्युषण पर्व का महत्व:
पर्युषण को अपनी आत्मा के करीब जाना है और इसे ध्यान और आत्मनिरीक्षण (आत्ममंथन) द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। मृत्यु के पश्चात पुर्नजन्म होता है और हमें नया जीवन जीने का मौका मिलता है। यदि हम हररोज प्रातः सुर्योदय के पहले ध्यान और आत्मनिरीक्षण (आत्ममंथन) द्वारा आत्मा के करीब जाकर (यानि अपने आप को पहचान सकते है) अपनी सारी इच्छाओं और भावनाओं का त्याग कर सकते है (मानो कि जैसे हम मर चूके हो) तब सुर्योदय होते ही हररोज हमारा पुर्नजन्म होता है एवं नया जीवन प्राप्त हो सकता है और हमें भरपूर ऊर्जावान सार्थक जीवन जीने का सुख मिल सकता है।
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